Tuesday, April 24


ऊपर नभ से चली
कई मील दूरी तय करके
पानी की बूँदें पहुँच ही गई

चिचिलाते सुलगते मनन को छु गई हैं
वैसे तो सुइयों सी चुभती हैं
पर झुलसते मन को शीतल भी तो करती हैं

नैन में जो सपने भरे हैं
पुरे से होते दिखते हैं
आंसू की बूँदें तो अभी भी हैं
बस फर्क सिर्फ इनता हैं की अब ये खुशियाँ बयाँ कर रही हैं

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