रास्ता तो सीधा सा लगा था मुझे
पर न जाने घूम कर वही जगह पर
कैसे आ गया हूं मैं
इक सपना सा लगता है
पलक झपकते ही सब गायब
राहत के वह चार पल
वह पीड़ा और उस से उभरना
लगा था कुछ देर तक रहेगा
पर पीड़ा है की डेरा जमाये बैठी है
इक से हैं दोनों
सुख और दुःख
कभी कोई ज्यादा तो कभी कम
सुख भोगना है तो दुःख को समझना पड़ेगा
तो क्या सुख की खातिर, दुःख की दुआ करूँ ?
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