इक दुराहे पर आ खड़ा हूँ
पेचीदे कशमकश में आ पड़ा हूँ
इस तरफ पथ मुश्किल न है
और धरे हैं सारे सुख
उजाला सा कल लगता है
सिमटे लगते हैं दुःख
उस तरफ करना है चिंतन गहन
दुःख कर लेना है सहन
खिची सी लगती है रैन
पर अंधियारे के संग है चैन
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